इस दिल को धड़कने की भी फुर्सत न मिलेगी.
तुमने इसे तारीफ़ से इस क़दर भर दिया
सूरज की तरह सल्तनत अब नूर की मेरी
पहले तो जल रहा था मैं जैसे कोई दिया.
अपने ही आप से लड़ता है दिल .
एक सवाल बार बार करता हैं दिल.
रोकते - रोकते रोक न सके
ऐसे मोड़ पर फिसलता हैं दिल
ख्वाहिशे अब और न रही
उसे ही पाने को तड़पता है दिल
छोर दी परवाह ज़माने की
उसके लिए ही धड़कता हैं दिल
फूल ने हसकर कहा
ऐसे क्यों मचलता हैं दिल .