मासूम से तेरे इस चेहरे को किसी की नज़र न लग जाए कहीं,
झुक गई तेरी ये पलकें अगर, सुबह में ही शाम न हो जाए कहीं
चलती हो क्यों यूं बलखा के तुम, रास्ते भी पागल न हो जाए कहीं,
कह दो हवा से न छेड़े इन जुल्फों को, बादल यहाँ न छा जाए कहीं
होठों की लाली होठों में ही रहे, छलक कर बाहर न आ जाए कहीं,
झटकों मत अपने बालों को इस तरह, बिन मौसम बरसात न हो जाए कहीं
हूर से हुश्न के दीदार के लिए, आसमान भी ज़मीन पे न उतर आए कहीं,
देखकर तेरी ये अल्हड़ अठखेलियाँ पत्थर में भी जान न आ जाए कहीं
झील सी तेरी इन आंखों में कोई, डूबकर ख़ुद को ही न खो जाए कहीं,
न लो मस्ती में यूं अंगदाइयां, जमाना ये सारा न मचल जाए कहीं
साथ में तेरी मीठी मुकुराहट के, ज़मीन पे फूल भी न बरस जाए कहीं,
देखकर बिंदिया माथे की तेरी, पूनम का चाँद भी न शर्मा जाए कहीं
चांदनी सी धवल ये रंगत तेरी, फिजा में उड़कर न बिखर जाए कहीं,
हिरणी सी तेरी इस चाल को देख, चलना ही सब न भूल जाए कहीं
अनमोल ये हुश्न तेरा लगता है जैसे, बदन से भी बाहर न चू जाए कहीं,
फूलों से नाजुक है तेरा बदन, लचक न इसमे कभी आ जाए कहीं
मत देखो मुझे इन मस्त निगाहों से, दिल ये मेरा बेचैन न हो जाए कहीं,
मुस्कुराया न करो यूं देखकर मुझको, सब्र का पैमाना न छलक जाए कहीं
आँखों का काजल गालों पे लगा लो, ज़माने की नज़र न लग जाए कहीं,
देखा न करो ख़ुद को आईने में कभी, ख़ुद की ही नज़र न लग जाए कहीं