Wednesday, November 9, 2011

देखता रहूँ उसे पागल की तरह ! !

वो है एक गुलाब की तरह,
ह्रदय है कोमल पंखुड़ियों की तरह !

मुस्कुराती है काँटों में रह कर,
अपनायी है काँटों को भी अपनों की तरह !

उपवन में जब अकेला खिल-खिलाती है,
लगती है मासूम, शायर की कल्पना की तरह !

सुर्ख लबों से जब कोई गीत गुन-गुनाती है,
लगती है सरगम के रूप की तरह !

आँखों में उसकी कुछ इस तरह तेज़ है,
लगती है सुबह की पहली किरण की तरह !

पलकों से जब मुझे वो सराहती है,
लगती है खुशियों से भरे आँगन की तरह !

जब होले से वो मुस्कुराया करती है,
लगती है बच्चों की मासूमियत की तरह !

आँखें मूंदे जब नज़र आती है,
मन करता है देखता रहूँ उसे पागल की तरह !!

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